आए हो बंजारों की तरह,
मेरी चाहतों को घर देने ।
मेरे अंधेरों में इस तरह
तुम जियोगे कब तक?
मेरी आँखों का मीठा ज़हर
पियोगे कब तक?
कहो तो तुम्हें दिखाऊँ वो खोखली, धुँधली दुनिया,
जिसमें बीता मेरा तन्हा बचपन ।
पर उन यादों का बोझ
तुम सँभालोगे कब तक?
जब भीतर मन की आग से
मैं शम्मा की तरह जल उठूँ,
तुम परवाने की तरह
यूँ जलोगे कब तक?
मेरे सय्याह दिल को
टटोलोगे कब तक?
साँसें साथ छोड़ने लगें मेरी
क्या तुम रहोगे तब तक?
इस खूबसूरत कविता मे छुपे दर्द का अंदाज़ा लगाना भी मुश्किल है।
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🙏aapne ise khoobsurat samjha yahi kaafi hai sir
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Amazing !!!!!😃😃😃
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Thanks
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